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आज मैं फिर लेकर आई हूं उत्तराखंड के बारे में एक और नई जानकारी ।वह है उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में स्थित कैंची धाम मंदिर।
कैंची धाम मंदिर उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध मंदिर है ।जो नैनीताल और अल्मोड़ा मार्ग पर स्थित है ।
नैनीताल से इस मंदिर की दूरी 17 किलोमीटर है ,और भवाली से इस मंदिर की दूरी 9 किलोमीटर है। अगर कभी भी इस मंदिर में जाने का अवसर आप लोगों को मिले तो आप लोग देखेंगे कि हिंदू धर्म के सभी देवी- देवताओं के दर्शन आप लोगों यहां पर हो जाएंगे ।वैसे यह मंदिर आज के समय में नीम करोली बाबा के आश्रम के नाम से न केवल उत्तराखंड में बल्कि विदेशों में भी काफी प्रसिद्ध है। नीम करोली बाबा के चमत्कार से संबंधित अनेक कथाएं उत्तराखंड में प्रसिद्ध है जो उनके चमत्कारों को दर्शाती है।
नीम करोली बाबा कौन थे ,उनका नाम नीम करोली कैसे पड़ा, आइए जानते हैं इसके बारे में--
नीम करोली बाबा की गणना बीसवीं शताब्दी के सबसे महान व ज्ञानी संतो से की जाती है। इनका जन्म स्थान ग्राम अकबरपुर, जिला फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश )में माना जाता है ।
कैंची धाम मंदिर नीम करोली धाम और नीम करोली आश्रम के ही नाम से जाना जाता है ।कुमाऊं क्षेत्र में रहने वाले हर व्यक्ति के मन में इनके प्रति काफी श्रद्धा है ।कहते हैं यह आश्रम नीम करोली महाराज ने ही बनवाया था ।जो बहुत दयालु और कष्टों को दूर करने के कारण एक चमत्कारी बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुए। इनकी चमत्कार करने की कहानी ना सिर्फ उत्तराखंड में प्रसिद्ध है बल्कि देश विदेशों में भी काफी प्रसिद्ध है ।इनके ही जन्मदिन को प्रतिवर्ष 15 जून को कैंची धाम में में बहुत भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इस जांच
इस मेले को देखने के लिए न केवल उत्तराखंड से बल्कि दूर-दूर से लोग उनके आश्रम के दर्शन करने के लिए आते हैं ।कहा जाता है बाबा जब 17 साल के थे तभी से वह सब कुछ जानते थे जो एक आम व्यक्ति नहीं समझ सकते ।उन्हें ईश्वर के बारे में अथाह ज्ञान था ।
हनुमान को वह अपना परम गुरु मानते थे ।कहते हैं नीम करोली बाबा ने अपने जीवन में 108 हनुमान मंदिर का निर्माण करवाया।
पर एक साधारण इंसान से वह नीम करोली बाबा के नाम से कैसे प्रसिद्ध हुए इनके बारे में अनेक कहानियाँ है।
यह बात बहुत पुरानी है। एक युवा योगी जिसका नाम था लक्ष्मी नारायण दास बड़ा खुश होकर और मस्ती में हाथ में लिए चिमटा कमंडल लेकर फर्रुखाबाद से टुण्डला गाँव जा रही रेल की गाड़ी के फर्स्ट क्लास के डिब्बे में चढ़ गया ।वह जो लक्ष्मी नारायण दास योगी था अपने ही धुन में मस्त खोया हुआ था ।और कुछ समय बाद वहां एक TC टिकट चेक करने के लिए आता है। वह लक्ष्मी नारायण दास को देखता है और उसे समझ में आ जाता है कि इसके पास पैसे नहीं है। क्योंकि लक्ष्मी नारायण दास के शरीर में ना को ना कोई खास वस्त्र थे और बाल भी काफी उनके बिखरे पड़े थे देखते ही
वह समझ गया और लक्ष्मी नारायण दास को डांटने लगा पर लक्ष्मी नारायण दास अपने ही धुन में मस्त चुपचाप खड़ा रहता है। कुछ देर बाद रेलगाड़ी नीमकरोरी गांव एक -
स्टेशन पर रुकी और TC ने उसे वही गुस्से से स्टेशन पर उतार दिया, लेकिन वह योगी अपना चिमटा गाड़ उसी
स्टेशन में ,
शांत भाव से बैठकर तपस्या करने लगा। गार्ड ने जैसे ही हरी झंडी दिखाई रेल गाड़ी आगे नहीं चली सबसे बड़ी बात गाड़ी चलने के बजाय एक ही जगह खड़ी होकर उसके टायर तेजी से घूमने लगे यह देखकर TC, रेल गाड़ी चालक ,और यात्री बहुत परेशान हो गए ;फिर काफी देर मेहनत करने के बाद जब गाड़ी नहीं चली तो एक यात्री ने उन्हें सलाह दी कि उस बाबा को जिसे टीसी ने स्टेशन पर उतार दिया है वापस उसे चढ़ा ले शायद रेलगाड़ी चल पड़े।
यह सुनकर चालक टीसी को काफी गुस्सा आ गया ,लेकिन फिर भी उन्होंने उस यात्री की बात सुनकर उस बाबा को ट्रेन में बैठा लिया ।जैसे ही लक्ष्मी नरायण दास ट्रेन में बैठा तो वह गाड़ी चल पड़ी। इसी घटना से नीम करोली बाबा प्रसिद्ध हुए। और जिस स्टेशन पर वह रुके थे, वह गाँव नीमकरोली नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह लक्ष्मी नरायण दास कोई और नहीं बल्कि नीम करोली बाबा थे ।लोग उन्हें ही करोली बाबा के नाम से पुकारने लगे ।
बाबा जी ने अपना आश्रम नैनीताल से 17 km
दूर और भवाली से 9 किलोमीटर दूरी पर कैंची ग्राम में बनाया ।यहां बनी राम कुटिया में ही बाबा जी रहते थे ।और लोगों से मिलते थे ।बाबा इतने चमत्कारी थेे ।
केवल भारत में ही नहीं बल्कि बाहर के देशों के लोग भी उनके चमत्कार को मानते थे ।
कहते हैं बाबा अपने आश्रम में भंडारे का आयोजन करते थे ,लेकिन कुछ भी उनके पास खाने का सामान न होने के बाद भी जिस दिन भंडारा करते थे सारे लोग वहां पर आकर पेट भर कर खाना खाकर जाते थे।
जब बाबा को लगा उन्हें शरीर त्याग देना चाहिए, उन्होंने अपने सभी भक्तों को बता दिया था ।
उन्होंने अपनी समधि का भी चयन खुद ही किया था।
9 September 1973 को बाबा आगरा चले गए ।
कहां जाता है वह एक काॅपी पर हर दिन राम का नाम लिखते थे ।
आगरा से वह मथुरा आए ।वही आते समय वृंदावन स्टेशन में बेहोश हो गए । उन्हें रामकृष्ण मिशन के अस्पताल में वृंदावन पहुंचाया गया।
10 सितंबर सन 1973 में उन्होंने संसार को अलविदा कह दिया।
विश्व विख्यात आध्यात्मिक गुरु रामदास , Steve Jobs,और मार्क जकरबर्ग जैसे लोगों का भी जीवन बाबा के वजह से ही बदला है।
बाबा आज अपने भक्तों के बीच में तो नहीं पर लेकिन भक्तों के बीच उनके प्रति श्रद्धा और विश्वास कहीं ना कहीं उनकी मौजूदगी को दर्शाती है।
आज भी कैंची धाम में साल के 12 महीने आप लोगों को हमेशा भक्तों की भीड़ नजर आएगी।
बहुत-बहुत धन्यवाद मेरा ब्लॉक पढ़ने के लिए ।
एक बार फिर से मैं वापस आऊंगी उत्तराखंड के बारे में एक नई जानकारी लेकर --
धन्यवाद
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