एक बार फिर से स्वागत है मेरे ब्लॉक में आप सभी लोगों का ।आज मैं ले कर आई हूं एक नई जानकारी देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में स्थित प्रसिद्ध जिला अल्मोड़ा के पाताल देवी मंदिर के बारे में कुछ रोचक कुछ ज्ञानवर्धक जानकारी ।
चलिए चलते हैं इस मंदिर के बारे में जानने के लिए ।
पाताल देवी मंदिर जो अल्मोड़ा जिले में है। बेहद खूबसूरत मंदिर है ।चारों तरफ से घिरे पहाड़ों और यदि मंदिर परिसर से हम नीचे को देखें तो हमें घाटियाँ दिखाई देती है। जहां आसपास काफी गाँव है ।
मंदिर के ठीक ऊपर स्थित है, आनंद माँई जी का प्रसिद्ध आश्रम ।
पाताल देवी मंदिर अल्मोड़ा से 6 किलोमीटर दूर ग्राम शैल में स्थित है और यह गाँव काफी बड़ा गाँव है।
आज से 250 वर्ष पुराने इस मंदिर के बारे में यह कहा जाता है की इस मंदिर के आस-पास चार पानी के प्राकृतिक स्रोत थे। अब जिनमें से तीन सूख चुके हैं।
मंदिर परिसर से नीचे देखने पर हमें एक कुंड दिखाई देता है। जिसे गौरीकुंड के नाम से भी जाना जाता है। यह पहले पानी से भरा रहता था ।पानी तो आज भी है पर लगभग ना के बराबर है ।
इसका पानी काफी गंदा हो गया हो गया है, क्योंकि कोई इसकी सफाई नहीं करता है ।
गौरी कुंड के ठीक नीचे अगर आप देखेंगे तो वहां पर एक प्राकृतिक स्रोत है पानी का।
जहां पर ग्राम शैल के लोग पानी पीने के लिए ले जाते है इसमें पानी काफी शुद्ध और ठंडा आता है। पहले इस जगह की किसी प्रकार की कोई रखरखाव नहीं करता था। पर आज के समय में इस जगह के आसपास की जगह को साफ कर कर पीने की पानी की और भी अच्छी व्यवस्था कर दी गई है।
इसके स्रोत से जो पानी आता है काफी ठंडा होता है कहां जाता है इस पानी के बारे में ;यह पताल देवी मां की चरणों से आता है ।इस पानी को पीने से लोगों का विश्वास है लोग निरोगी रहते हैं।
जैसे ही मंदिर में प्रवेश करते हैं तो प्रवेश द्वार पर क्षेत्रीय पुरातत्व इकाई अल्मोड़ा और संस्कृति निदेशालय उत्तराखंड द्वारा लगाए गए सांस्कृतिक पट्टे पर इसका निर्माण कब किया गया ।इसकी सूचना अंकित की गयी है ।
पाताल देवी मंदिर पूरी तरह से पत्थर का बना हुआ है ।कहा जाता है इस मंदिर को चन्द वंशी राजा दीप चन्द के शासनकाल में 1748-1777 मे एक बहादुर सैनिक सुमेर अधिकारी द्वारा बनाया गया था । जो कुछ समय के बाद यहां मंदिर टूट गया था जब गोरखों की शासन व्यवस्था शुरू हुुई फिर से इस मंदिर को शुरुआत से बनाया गया ।
देवालय के गर्भ ग्रह में शक्ति पीठ विद्यमान है । शिखर के मध्य में आगे निकली हुई एक सिलापट्ट पर गज ,सिंह तथा पूर्वा भिमुख मंदिर के सामने चबूतरे पर नंदी महाराज की एक प्रतिमा बनाई गई है। जो देखने में काफ़ी ख़ूबसूरत लगती है ।
आज भी अगर हम देखें तो इस मंदिर में कोई भी बाहर की मूर्ति स्थापित नहीं की गई है। पत्थरों पर बनी मां पाताल देवी और शिवलिंग के दर्शन हमें यहां पर मिल जाएंगे।
पाताल देवी मंदिर पूरी तरह से पत्थर से बना हुआ है ।वैसे तो देखा जाए यह मंदिर गांव से हटकर बिल्कुल शांत इलाके में बना हुआ है ।नवरात्रों के समय यहां आपको देवी के भजन सुनाई देंगे।
विशेष रूप से यह मंदिर जो सजाया जाता है वह शिवरात्रि के समय। शिवरात्री के समय पर यहां काफी चहल-पहल रहती है। यहां पर शिवरात्रि के समय में भक्तों की काफी भीड़ लगी रहती है ।
मंदिर के अंदर शिवलिंग बना हुआ है ।शिवरात्रि के समय यहां पर मेले का भी आयोजन किया जाता है। काफी दूर-दूर से लोग यहां पर दर्शन करने के लिए आते हैं ।
वैसे तो पूरे साल भक्तों का आना जाना लगा रहता है । पर शिवरात्रि के समय यहां पर हमें काफी चहल-पहल दिखती है ।
इस मंदिर की एक और खासियत है, यहां पर मूर्तियाँ पत्थरों पर अंकीत की गई है ;चाहे वह मां दुर्गा की हो ,गणेश जी की हो , या शिवलिंग ।यहां पर पूरी तरह से पत्थरों के बने हुए हमें दिखाई देंगे । यह मंदिर पूरी तरह पत्थर का बना है ।परिसर में नंदी की प्रतिमा है वह भी पत्थर से निर्मित बेहद खूबसूरत लगती है ।।
मंदिर जाने के लिए रास्ता भी है जो पत्थर और सिमेन्ट का बना हुआ है।
पहले के मुकाबले इस मंदिर की व्यवस्था काफी अच्छी हो गई है ।यह मंदिर गांव से काफी दूर है, और बहुत शांत स्थान पर है। तो यहां पर आने से काफी शांति मिलती है।
चारों तरफ से घिरे पहाड़ इस मंदिर की खूबसूरती को और ज्यादा बढ़ा देते है।साथ में आनंद माँई का आश्रम ;इस मंदिर की पवित्रता को और ज्यादा बढ़ा देता है ।
मेरा ब्लॉग पढ़ने के लिए धन्यवाद
मैं लेकर आऊंगी फिर से एक नई जानकारी उत्तराखंड के बारे में लेकर।
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