नमस्कार स्वागत है आप सभी का मेरे ब्लॉग में एक बार फिर से।
मैं आज लेकर आई हूँ।जीवन की तीन अवस्था अवस्थाएं और उसके ऊपर मेरी छोटी सी कविता।
हम सभी को पता है जीवन की तीन अवस्था होती है ।हर अवस्था में मनुष्य की अलग-अलग जरूरतें भी होती हैं ।
अगर हम देखें बच्चा जब जन्म लेता है वह पूरी तरह से अपने माता-पिता के ऊपर ही निर्भर रहता है।
माता-पिता उसका कितना ख्याल रखते हैं ; उसके रोने से ही अंदाजा लगा लेते हैं बच्चे को किस चीज की जरूरत है ।
जब धीरे-धीरे बच्चा बड़ा होता है फिर उसकी जरूरतें अलग हो जाती हैं।
जैसे ही बच्चा युवा अवस्था में पहुँचता है उसकी जरूरतें पुरी तरह अलग हो जाती है। वह किसी पर निर्भर नहीं रहता।
जैसे ही मनुष्य युवा अवस्था में से प्रौण अवस्था में प्रवेश करता है ।फिर उसकी जरूरत और भी अलग हो जाती हैं ।शरीर धीरे-धीरे कमजोर होने लगता है ।
पहले से ज्यादा मानसिक रूप से समझदार हो जाता है ।अपने जीवन के सारे काम लगभग समाप्त कर चुका होता है ।
फिर अंत में मनुष्य वृद्धावस्था में प्रवेश करता है । उसकी जीवन की सारी जिम्मेदारी पूरी हो जाती है ।उसके पास अपने लिए और अपने घर वालों के लिए बहुत समय रहता है । वृद्धा अवस्था में शरीर कमजोर हो जाता है।
कहते हैं ; यह वह समय होता है जब मनुष्य फिर से एक बच्चा बन जाता है।
सभी अवस्थाओं को लेकर जिनके अलग अलग अनुभव और जरूरतें होती है; इन तीनों अवस्थाओं के ऊपर छोटी सी कविता बनाई है।
बचपन जीवन का सबसे खूबसूरत दौर होता है ,
यहाँ ना कोई अपना और ना कोई पराया होता है।
बचपन जीवन की हर परेशानी और जिम्मेदारी से दूर होता है,
बचपन में मन की गंगा की तरह पवित्र होता है ।
जहाँ जो प्यार करें बस वही अपना होता है।
जहाँ दोस्तों और खिलौनों के बीच ही अपना छोटा सा संसार होता है,
सच में बचपन जीवन का सबसे खूबसूरत दौर होता है ।
इसी तरह मनुष्य युवा अवस्था में प्रवेश करता ह
युवा अवस्था मनुष्य के जीवन का ऐसा दौर होता है,
जहां मन मस्त और उत्साह से भरा होता है,
जहां मनुष्य भविष्य के लिए चिंतित रहता है।
मनुष्य रोज नई उमंग और उम्मीदें मन ही मन में बुनता रहता है,
जहां वह हर चीज को पाने की मन में इच्छा रखता है ।
जवानी मनुष्य के जीवन का ऐसा दौर होता है ,
जहां वह बहुत सारी जिम्मेदारी से घिरा होता है,
युवा अवस्था में ही मनुष्य अपने को सुखद जीवन के लिए तैयार करता है।
अंत में मनुष्य वृद्धावस्था में प्रवेश करता है,
यह जीवन का ऐसा पड़ाव होता है जहां मनुष्य अपनी हर जिम्मेदारी खत्म कर चुका होता है।
जहां मनुष्य शरीर से लाचार और बेबस होता है ,
शरीर चाहते हुए भी मनुष्य का साथ नहीं दे पाता है ।
कहते हैं बुढ़ापे में मनुष्य फिर बच्चा बन जाता है,
चाहते हुए भी मनुष्य काम नहीं कर पाता है।
पर सच में बुढ़ापा अनुभव और तजुर्बों से बना होता है ।
सच में मनुष्य का जीवन चक्र बड़ा अनोखा होता है,
जहां से मनुष्य शुरू करता है; फिर अंत में वहीं पर पहुंच जाता है ।
जीवन भर यूं ही जीवन चक्र चलता रहता है।।
धन्यवाद
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