नमस्कार स्वागत है आप सभी का एक बार फिर से मेरे ब्लॉक में।
मैं आज लेकर आई हूँ बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी तो चलिए चलते हैं जाने के लिए।
आज लुइस ब्रेल का जन्मदिवस है। जिनका जन्म 4 जनवरी सन 1809 में फ्रांस के एक छोटे से गांव कुप्रे में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था।
इनके पिता साइमन रेले ब्रेल शाही घोड़ों के लिए काठी और जिन बनाने का काम करते थे।
परिवार की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी ।तो इनके पिता को और अधिक मेहनत करनी पड़ती थी। लुईस ने 3 वर्ष की आयु में ही अपने पिता के साथ काम करना शुरू किया। क्योंकि घर की आर्थिक स्थिति सही नहीं थी।
बचपन से ही लुईस और बच्चों की तरह शरारती भी थे एक दिन काठी बनाने के लिए लकड़ी को काटने वाले चाकू का जो इस्तेमाल किया जाता है उसको उसके साथ खेलते खेलते उन्होंने चाकू उछाला और वह चाकू उछलकर उनकी आंखों में आ गिरा जिससे उनकी आँखों से रक्त बहने लगा वे अपनी
आंखों को दबा के घर पहुंचे तो परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उन्हें साधारण जड़ी बूटियों से आंखों में पट्टी करके ही उनका घर पर ही इलाज किया गया।
पर कुछ समय माता-पिता से आंखों में कम दिखाई देने की उन्होंने शिकायत की ।
लेकिन उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया धन की कमी की वजह से। और 8 वर्ष की आयु तक आते-आते ही वह पूर्ण रुप से दृष्टिहीन हो गए ।
एक हादसे के कारण दोनों आंखों को वे अपनी गंवा बैठे थे। मात्र 8 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने अपनी आंखों को खोना पड़ा। जिसकी की वजह से उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
लेकिन उन्होंने कभी भी हिम्मत नहीं हारी।
एक बार वह फ्रांस के मशहूर पादरी वैलेंटाइन की शरण में जा पहुंचे। पादरी के प्रयासों के कारण ही 1819 में 10 वर्षीय बालक लुईस को रॉयल Institute फॉर ब्लाइंड में दाखिला मिल गया।
जब वे 12 साल के हुए तो उन्हें पता चला शाही सेना के सेवानिवृत्त कैप्टन चार्ल्स बार्बर ने सेना के लिए ऐसी लिपि का विकास किया है जिनकी सहायता से वे अंधेरे में भी उस हाथों की सहायता से पढ़ सकते थे।
कैप्टन का उद्देश्य युद्ध में सैनिकों की परेशानियों को कम करना था। तभी लुईस के मन में भी दृष्टिहीनों के लिए एक अलग भाषा के विकास का ख्याल मन में आया ।
पादरी ने उनकी मुलाकात कैप्टन से कराई।
केप्टन लुईस की बातों से बहुत प्रभावित हुए ।और दोनों ने मिलकर साथ कुछ लिपियों का विकास किया ।उन्होंने 8 वर्षो के अथक प्रयास से कैप्टन के साथ की वजह से 6 बिंदुओं पर आधारित लिपि बनाने में 1829 में सफलता हासिल की लेकिन इस लिपि में कैप्टन का ही नाम रहा ।
जो उनको अच्छा नहीं लगा।
उन्होंने पादरी वैलेंटाइन की सहायता से सरकार से प्रार्थना की कि इस लिपि को दृष्टिहीनों की एक अलग भाषा के रूप में मान्यता दी जाए। पर सफलता नहीं मिली ।।
लेकिन उनके अथक प्रयास से भी उन्हें सफलता नहीं मिली और वे 43 वर्ष की आयु में सन 18 52 में उनकी मृत्यु हो गई ।
लेकिन उनकी मृत्यु के बाद 6 बिंदुओं की लिपि लगातार लोकप्रिय होती गई और दृष्टिहीनों के लिए एक मददगार भाषा साबित हुई ।
उनकी मृत्यु के बाद उनकी बनाई गई लिपि निरंतर लोकप्रिय होती चली गई आज भी है लिपि पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।
आज उनके प्रयासों से ही इस लिपि से काफी लोग जो दुर्घटना से या जन्मजात दृष्टिहीन होते हैं उनको काफी सहायता मिल रही है ।
एक दृष्टिहीन होने के बाद भी उन्होंने कभी भी हिम्मत नहीं आ रही और अपना अथक प्रयास से इस लिपि का विकास किया।
उनके जन्म दिवस में मेरी श्रद्धांजलि रूप छोटी सी लाइन है।
करके अथक प्रयास उन्होंने ,
ब्रेल लिपि का विकास किया ।
होकर भी दृष्टिहीन,
उन्होंने सपना अपना साकार किया ।
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