नमस्कार स्वागत है आप सभी का एक बार फिर से मेरे ब्लॉक में।
मैं आज लेकर आई हूँ भारत की सबसे ऊँची पर्वत श्रृंखला के बारे में छोटी सी जानकारी तो चलिए चलते हैं वह जानकारी जानने के लिए ।
आप सभी लोगों को पता कि दुनिया की सबसे ऊँची पर्वत श्रृंखला एवरेस्ट मानी जाती है ।जिसकी ऊँचाई 8848 मीटर है।
यह हिमालय का ही हिस्सा है ।पहले यह xv के नाम से जानी जाती थी.। माउंट एवरेस्ट की ऊँचाई उस समय में 29,009फीट मापी गई थी ( 8,840 मीटर )मानी गयी थी।
माउन्ट एवरेस्ट को अलग- अलग नाम से भी पुकारा जाता है । नेपाल में स्थानीय लोग इसे सागरमाथा के नाम से जानते हैं ।
यह नाम इसे नाम नेपाल के इतिहासकार बाबूराम आचार्य 1930 ने दिया था। तिब्बत में इसे सदियों से चोमोलंगमा या पर्वतों की रानी के नाम से भी जाना जाता है।
बात अगर हम करें इस पर्वत माला को सबसे ऊँचा पर्वत होने का श्रेय कैसे मिला तो। इसके पीछे भी बहुत लंबी कहानी है।
पर्वतों को ऊँचाई निर्धारित करने के लिए सन 1808 में Britishers ने भारत का एक महान त्रिकोमितीय सर्वे शुरू किया। जो सर्वे दक्षिण भारत से शुरू होकर उत्तर भारत की ओर बढ़ा। जो विशाल 500kg विकोणमान ( थियोडोलाइट ) जिसे उठाने के लिए 12 लोग लगते हैं नापने के लिए इस्तेमाल किया गया । ताकि सही रूप से मापा जा सके।
1830 में वे लोग हिमालय के नजदीक पहाड़ों के पास पहुँचे पर नेपाल ने उन्हें अपने देश में घुसने देने के लिए तैयार नहीं था। क्योंकि नेपाल को राजनैतिक आक्रमण का डर था । पर उनके अनुरोध के बाद भी नेपाल ने उनकी बात नहीं मानी।
ब्रिटिशों को तराई से ही अवलोकन करने के लिए मजबूर किया गया । तराई में मलेरिया के कारण सर्वे करना बहुत मुश्किल था। जिस कारण तीन सर्वे करने वाले अधिकारी मलेरिया के कारण मारे गए।
खराब स्वास्थ्य के कारण कई और अधिकारी भी बीमार हो गए। फिर भी 1847 में ब्रिटिश अवलोकन करने के लिए मजबूर थे और अवलोकन स्टेशन से लेकर 240 किलोमीटर दूर तक हिमालय के शिखरों का विस्तार से अवलोकन करने लगे। खराब मौसम के कारण काम साल के अंत में 3 महीने तक रुका रहा ।
1847 के नवंबर में भारत के ब्रिटिश सर्वे अधिकारी जनरल एन्ड्रयु वाग ने सवाईपुर स्टेशन जो हिमालय के पूर्वी छोर पर है से सर्वे शुरू किया ।उस समय कंचनजंगा विश्व की सबसे ऊँची चोटी मानी गई ।उसके पीछे भी लगभग 230 किलोमीटर दूर पश्चिम में एक चोटी देखी गई । Armstrong ne जो वाग के एक सहअधिकारी थे जिन्होंने जो चोटी देखी उसे चोटी 'बी 'नाम दिया। पर उन्होंने लिखा चोटी 'बी ' कंचनजंगा से ऊँची चोटी है। पर अवलोकन बहुत दूर से किया गया था ।अवलोकन करने के लिए नजदीकी जरूरी थी। वाग ने अपने दूसरे साथी जॉन को चोटी का सर्वे करने के लिए भेजा ।पर बादल ने उनका काम खराब कर दिया।
1849 में वाग ने वह क्षेत्र जेम्स निकोलसन को सौंप दिया। उन्होंने 190 किलोमीटर दूर जिरोल के दो सर्वे तैयार किए। निकोलसन तब अपने साथ बड़ा विकोणमान लाए। जिसे उन्होंने पूरब की तरफ घुमा दिया। पांच अलग-अलग जगह से चोटी के सबसे नजदीक 174 किलोमीटर दूर से 30 से भी अधिक सर्वे किए गए ।
पर सच्चाई को और अधिक जानने के लिए वह फिर सर्वे करने के लिए पटना के गंगा नदी के पास गए ।पटना से के कच्चे हिसाब में चोटी की ऊंचाई 9,200 मीटर ऊँची मापी गई थी।पर निकोलसन को मलेरिया
के कारण घर लौटना पड़ा ।माइकल हेनेसी, वाग का एक सहायक था जिन्होंने रोमन संख्या के आधार पर चोटी को निर्दिष्ट करना शुरू किया ।
उसने कंचनजंगा को IX नाम दिया और चोटी बी को XV नाम दिया।
1852 में सर्वे केंद्र देहरादून लाया गया। भारतीय गणितज्ञ राधानाथ सिकदर और बंगाल के सर्वेक्षक ने निकोलसन के माप के आधार पर त्रिकोणमितीय हिसाब किताब का प्रयोग पहली बार विश्व की सबसे ऊँची पर्वतमाला को एक पूर्व प्रमुख के नाम पर इसे एवरेस्ट दिया गया।
हिसाब किताब चलता रहा जिसमें कंचनजंगा की ऊँचाई साफ तौर पर 8,582 मीटर और ऊँचाई 8,850 मीटर मापी गई ।
इस बारे में निष्कर्ष निकला विश्व की सबसे ऊँची चोटी का खिताब मिला माउंट एवरेस्ट को।
तो एक छोटी सी कहानी थी माउंट एवरेस्ट के सबसे ऊँचे पर्वत होने की खिताब मिलने की।
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