नमस्कार स्वागत है आप सभी का एक बार फिर से मेरे ब्लॉक में।
मैं आज लेकर आई हूँ सृष्टि की जन्मदाता यानी महिलाओं के ऊपर मेरा एक छोटा सा लेख और उस पर आधारित मेरी छोटी सी कविता तो चलिए चलते हैं जानेने के लिए ।
ग्रहणी किसी भी परिचय की मोहताज नहीं होती है ग्रहणी वह है जो साल के 365 दिन काम करती है ।जिसके लिए ना कोई सरकारी छुट्टी का महत्व होता है ना ही किसी रविवार के दिन का।
हमारे देश की जनसंख्या में 65 करोड़ महिलाएं हैं। जिसमें 20 करोड़ वह महिलाएं हैं जो केवल अपने ही घर को संभालती है ।यानी घर पर रहकर अपने घर का काम करती हैं ।हफ्तों के सातों दिन 24 घंटे पूरी जिम्मेदारी से काम करती है।
कभी सोचा है आप लोगों ने फिर भी ग्रहणी को समाज में क्यों सम्मान नहीं मिलता। समाज में पुरुषों को बाहर की जिम्मेदारी सौंपी गई है ऐसा नहीं है महिलाएं बाहर जाकर काम नहीं करती हैं।
आज बहुत सारी महिलाएं काम भी करती हैं पुरुषों के समान या उससे भी आगे बढ़ रही हैं। पर उन महिलाओं की जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ जाती है वह घर और बाहर दोनों बड़ी अच्छी तरह से संभालती है।
मेरा आज का लेख हमारे देश में जो महिलाएं घर पर रहकर सारी जिम्मेदारी संभालती है उनको समर्पित है। जो घर पर ही रहती है।
शायद लोगों को भी लगता है घर पर रहकर उसे किसी चीज का कोई ज्ञान नहीं है ना ही घर के बड़े फैसलों में ही ग्रहणी को शामिल नहीं किया जाता है।
पर ऐसा नहीं है। 24 घंटे साल के काम करने वाली ग्रहणी बिना किसी स्वार्थी होकर सारी जिम्मेदारी निभाती है।
शायद समाज को भी यही लगता है उनका काम है इसमें क्या बड़ी बात है । घर में काम करती है यही सोचकर उनके मन में हीन भावना आ जाती है।
जो महिलाएं बाहर जाकर काम करती हैं वे उन महिलाओं के सामने अपने आप को छोटा महसूस करती हैं ।
शायद ग्रहणी की सोच यही हो जाती है यह तो उनका काम ही है। हर जिम्मेदारी संभालते - संभालते उनको अपने लिए वक्त नहीं मिलता। जब वक्त मिलता है तो उनका वक्त ही चला जाता है।
पर आज का मेरा यह लेख उन सभी ग्रहणियों के लिए है जो घर पर रहकर खुशी- खुशी अपनी सारी जिम्मेदारियां निभाती है।
कोई भी दुख कोई भी दर्द होने पर भी कभी भी किसी को नहीं बताती हैं।
घर संभालते संभालते उन सब में अपना ही वजूद भूल जाती हैं।
उन सब महिलाओं के लिए आज की मेरी कविता जो ढाल बनकर अपने परिवार के सामने खड़ी रहती हैं और मैं उन सभी ग्रहणियों से एक बात जरुर कहना चाहूँगी-
कभी भी घर में रहकर अपने आप को छोटा या किसी से कम मत समझिए घर में काम करने वाली ग्रहणी परिवार की आत्मा है । वह एक पेड़ की तरह है जिस पर परिवार की शाखाएं जीवित है।
ग्रहणी के अस्तित्व से ही परिवार का वजूद है। पूरे समाज में ग्रहणी का स्थान बहुत ऊंचा है। जो निस्वार्थ होकर अपने परिवार की सेवा करती है ।
तो मेरी छोटी सी कविता उन सभी ग्रहणी को समर्पित है-
एक ग्रहणी की कहानी उसी की जुबानी।
जब हम पूछे ग्रहणी से किसी क्या करती हो तुम,
ग्रहणी कुछ हिचकीचाकर कहती ।
नहीं मैं कुछ काम नहीं करती ,
बस घर पर ही रहती।
पर बहुत सच ही कहती ग्रहणी वह कुछ काम नहीं करती ।
सिर्फ सुबह जल्दी उठकर सबको बिस्तर पर चाय पिलाती।
फिर क्यों कहती ग्रहणी वह कुछ काम नहीं करती।
बस भाग -भाग कर सारा दिन घर का वह काम करती ।
सुबह नाश्ते में क्या बनाऊं, उसको यह चिंता है सताती ।फिर क्यों कहती ग्रहणी वह कुछ काम नहीं करती।
सभी को खुश करूं मैं कैसे बस उसे यह चिंता है सताती ।जिम्मेदारी से अपने खुश करूं मैं कैसे रात दिन बस वह यही सोचती ।
फिर क्यों कहती ग्रहणी वह कुछ काम नहीं करती। सबके उठने से पहले वह उठती,
सबको खिलाकर प्यार से , खाना वह बाद में खाती।
सुला कर सभी को प्यार से, पहले फिर बाद में सोती।
फिर क्यों कहती ग्रहणी वह कुछ काम नहीं करती।
सभी की जरूरतों का ध्यान वह रखती,
घर की सारी जिम्मेदारी अकेले निभाती।
भुलाकर दर्द वह सारा अपना,
रात दिन सबको खुशियां देती।
फिर क्यों कहती ग्रहणी वह कुछ काम नहीं करती ।
परिवार को खुशियां देने की चाहत में,
सारा जीवन खुशी से बिताती ।
फिर क्यों कहती ग्रहणी वह कुछ काम नहीं करती।
धन्यवाद मेरा ब्लाॅग पढ़ने के लिए
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