स्वागत है आप सभी का एक बार फिर से मेरे ब्लॉक में ।
मैं आज आपको लेकर चलूंगी फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान जो फूलों की घाटी का नाम है जिसे अंग्रेजी में वैली ऑफ फ्लावर्स के नाम से जाना जाता है उसके बारे में मेरी महत्वपूर्ण जानकारी।
फूलों की घाटी यानी जिसे अंग्रेजी में वैली ऑफ फ्लावर्स के नाम से भी जाना जाता है यह भारतवर्ष के उत्तराखंड राज्य में गढ़वाल क्षेत्र में है। इसे फूलों की घाटी विश्व संगठन यूनेस्को द्वारा सन 1982 में घोषित विश्व धरोहर स्थल नंदा देवी अभ्यारण नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान का एक भाग है।
फूलों की घाटी नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान फूलों की घाटी का जन्म कैसे हुआ था शायद बहुत सारे लोग इस बारे में नहीं जानते हैं तो चलिए मैं आपको बताती हूं उसका जन्म कैसे हुआ। फूलो की घाटी का जन्म पिंडर से हुआ है।
जिसे पिंडर घाटी भी कहते हैं। पिंडर घाटी दो शब्द से मिलकर बना है ।
पिंठ + घाटी।। पिंड का अर्थ है हिम और घाटी का अर्थ है पहाड़ों का क्षेत्र जहाँ महादेव भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है।
जो मुख्य रूप से चमोली जिले के पिंडर घाटी का ही क्षेत्र है और देवी-देवताओं का निवास स्थान है ।
आज भी पिंडर घाटी में भगवान शिव के गण और देवताओं के वंशज निवास करते हैं और हर वर्ष माता पार्वती नंदा देवी को हिमालय तक भगवान शिव के तपस्वी स्थान तक पहुंचाने आते हैं ।
जिसे वर्तमान में नंदा देवी यात्रा या भगवती भैट के नाम से भी जाना जाता है।
पर इस घाटी का जन्म कैसे हुआ इसके पीछे भी रामायण काल में एक कहानी बनी हुई है।
कहा जाता है रामायण काल में हनुमान जी संजीवनी बूटी की खोज में इस घाटी में पधारे थे। इस घाटी का पता सबसे पहले ब्रिटिश पर्वतारोही प्रैंक एस smith उनके साथी आर एल होल्डसवर्थ ने लगाया था।
जो संयोग से 1931 में अपने कामेट पर्वत के अभियान से लौट रहे थे ।
इसकी बेइंतेहा खूबसूरती से प्रभावित होकर स्मिथ 1937 में इस घाटी में वापस आए और 1938 में वैली ऑफ फ्लावर्स नाम से एक किताब उन्होंने प्रकाशित की। बर्फ से घिरा हुआ यह पर्वत और फूलों की 500 से अधिक प्रजातियों से सजा हुआ यह पहाड़ विशेषज्ञों फुल प्रेमियों के लिए विश्व प्रसिद्ध स्थल बन गया।
इस घाटी की खूबसूरती के बारे में बताने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है ।
फूलों की घाटी को में अगर आपको भ्रमण करने के लिए आना है तो जुलाई-अगस्त व सितंबर के महीने को सर्वोत्तम महीना माना जाता है यहां पर आपको हर तरह के फूलों के प्रजातियां दिखाई देंगे सितंबर में ब्रह्म कमल खिलते हैं तो देखता मुकमल देखने के लिए यह महीना सबसे उत्तम माना जाता है ।
नवंबर से मई माह के बीच इस घाटी में बर्फ ही बर्फ रहती है ।जुलाई एवं अगस्त माह के दौरान अल्पाइन जड़ी की छाल की पंखुड़ियों में रंग छिपे रहते हैं।
यहाँ पर पाए जाने वाले फूलों के पौधे में
एनीमोन, जर्मेनियम, मार्स, गेंदा, प्रिभुला, पोटेनिटला, जिउम, तारक, लिलियम, हिमालय नीला पोस्ट, बछनाग, डेलफिनियम, रानुनकूलस ,कोरिडालिस, इन्डुला, सौसुरिया, कंपानुला, पैडीक्युलस,
मोरिना, इंम्पेटिनयस, बिस्टोरटा, लिगुलारिया, आनाफलिस, लोबिलिया, थर्मोपसिस, ट्रौलियस,
एक्युलेगिया, कोडोनोपसिस; डैक्टाइलोरहिज्म,
आदि पाई जाने वाली प्रमुख फूलों की प्रजातियां हैं जो दिखने में बेहद खूबसूरत और मन को मोहने वाली होती हैं ।
बात में अगर हम करें कि यहाँ पर आने के लिए आपको कौन से यातायात के साधनों का सहारा लेना पड़ेगा ।तो फूलों की घाटी तक पहुंचने के लिए चमोली जिले का अंतिम बस अड्डा गोविंदघाट 275 किलोमीटर दूर है ।जोशीमठ से गोविंदघाट की दूरी 19 किलोमीटर है। यहाँ से प्रवेश स्थल की दूरी लगभग 13 किलोमीटर है। जहाँ से पर्यटक 3 किलोमीटर लंबी वह आधी किलो मीटर चौड़ी फुलो की घाटी में घूम सकते हैं।
ब्लाॅग पढ़ने के लिए आप सभी का बहुत- बहुत धन्यवाद ।
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