नमस्कार स्वागत है आप सभी का एक बार फिर से मेरे ब्लॉक में।
मैं आज लेकर आई हूँ ऐसे व्यक्ति के बारे में जानकारी जिसकी विल पावर की कहानी को सुनकर हम सभी को बहुत प्रेरणा मिलती है तो चलिए जानते हैं ऐसे ही व्यक्ति के बारे में वे कौन थे।
वह महान व्यक्ति थे स्टीफन हॉकिंस एक ऐसा नाम शायद ऐसा कोई भी नहीं होगा जो उन्हें नहीं जानता हो ।मात्र 21 साल में एक ऐसी बीमारी ने उन्हें जकड़ लिया था जिसके वजह से उनका सारा शरीर ने काम करना बंद कर दिया।
1963 में उनको पता चला कि उन्हें मोटर न्यूरॉन नाम की बीमारी हो गई है। डॉक्टर ने उनसे कहा कि वे मात्र 2 से 3 साल तक ही जीवित रहेंगे लेकिन अपने विल पावर के कारण उन्होनें डॉक्टरों की बात को झूठा साबित कर दिया और उन्होंने पूरे 76 साल तक अपने जीवन को जीया।
उन्हें मोटर न्यूरॉन डिजीज या मोटर न्यूरॉन की बीमारी थी जिसका असर सीधे दिमाग और तंत्रिका पर पड़ता है ।जिससे शरीर धीरे-धीरे कमजोर पड़ने या पूरा शरीर सुन्न हो जाता है। मोटर न्यूरॉन ऐसी बीमारी है जिसमें दिमाग और आंख को छोड़कर सारा शरीर पैरालाइज हो जाता है।
वैसे यह बीमारी 60 से 70 वर्ष की आयु के लोगों पर ज्यादा असर डालती है। पर कभी-कभी छोटी उम्र के लोगों पर भी इसका असर दिखने में आता है। यह मांसपेशियों को कमजोर बना देता है। फिर पूरा शरीर पैरालाइज़ हो जाता है ।कुछ ही समय के बाद बोलने और निगलने की क्षमता भी खत्म हो जाती है।
डालते हैं छोटा सा प्रकाश उनके जीवन पर।
इनका जन्म 8 जनवरी 1942 को हुआ था ।एक महान ब्रिटिश भौतिक वैज्ञानिक थे। हॉकिंस का नाम आइन्सटाइन के बाद दूसरे नंबर पर आता है। सबसे बड़े भौतिक शास्त्रियों में से इनका नाम आता है। इनके पिता ने आयुर्विज्ञान और माता इसाबेला ने दर्शनशास्त्र से अर्थ शास्त्र और राजनीति में शिक्षा प्राप्त की थी। दोनों की शिक्षा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से हुई थी।
Stephen हॉकिंस को 21 साल की उम्र में डॉक्टर से पता चला कि उन्हें मोटर न्यराॅन नाम की बीमारी हो गई है।
यह कैसी बीमारी थी जिसने उनके सारे शरीर को सुन्न कर दिया था।
जिस वजह से वह चलने की शक्ति भी खो बैठे थे और चलने के लिए उन्होंने ऑटोमेटिक व्हीलचेयर का सहारा उन्हें लेना पड़ा और वह बोल भी नहीं पाते थे तो बोलने के लिए उन्होंने कंप्यूटराइज्ड वॉइस सिंथेसाइजर नामक यंत्र का सहारा लिया।। जो उनके दिमाग की बात को सुनकर मशीन के जरिए आवाज निकालता था ।स्टीफन हॉकिंस ने इस मशीन के जरिए साइंस की बहुत सारी किताबों भी लिखी थी। हॉकिंस ने जीवन में कभी भी हार नहीं मानी । बीमार होने के बाद भी पढ़ने के लिए कैंब्रिज चले गए। अल्बर्ट आइंस्टीन के बाद दुनिया में इनका ही नाम आता स्टीफन हॉकिंस ने क्वांटम ग्रेविटी और ब्रह्मांड विज्ञान के अध्ययन के अलावा ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम नाम की पुस्तक लिखी जो बेस्ट सेलर रही ।
14 अप्रैल 1918 में इन्होंने दुनिया को ब्लैक होल का रहस्य बताया था और 1974 में इस थ्योरी को लोगों के सामने लेकर आए थे।
इतनी लाइलाज बीमारी होने के बाद भी उन्होंने कभी भी जीवन में हार नहीं मानी ।
उनको उनके कामों के लिए सन 1979 में अल्बर्ट आइंस्टाइन मेडल ,
1982 में द ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एंपायर।
1988 में भौतिक विज्ञान में बॉल्फ प्राइस से सम्मानित किया गया।
आज स्टीफन हॉकिंग हमारे बीच में नहीं है। यह दुनिया से 14 मार्च 2018 को विदा हो गए थे। लेकिन आज भी इनकी कहानी सबके लिए प्रेरणादायक है। जिनका शरीर काम नहीं करने के बावजूद भी एक महान साइंटिस्ट बने ।
उनकी इच्छाशक्ति और उनका साहस लोगों को हमेशा प्रेरणा देता ।
धन्यवाद मेरा ब्लाॅग पढ़ने के लिए।
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