नमस्कार स्वागत है आप सभी का फिर से मेरे ब्लॉग में।
मैं आज लेकर आई हूँ कि भदिन प्रतिदिन जिस तरह प्राकृतिक घटनाएं हो रही है उसके बारे में मेरी छोटी सी कविता और मेरे विचार।
जिस प्रकार दिन प्रतिदिन मनुष्य प्रगति कर रहा है पर इस प्रगति में कहीं ना कहीं मनुष्य प्रकृति को हानि भी पहुंचा रहा है, उसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव हम मनुष्य पर ही पड़ रहा है ।चारों तरफ से आ रही बाढ़ की तबाही से हम मनुष्य ही परेशान हो रहे हैं और लैंडस्लाइड की वजह से काफी लोग अपने परिवारों को और स्वयं अपनी जान भी खो बैठते हैं ।लेकिन शायद हम में से कोई भी इस बात को समझना नहीं चाहता कि इसका कारण हम सब मनुष्य ही हैं।
अगर शायद हम अपने फायदे के लिए जंगलों के हरे भरे पेड़ों को नहीं काटते तो शायद आज हम लोगों को आज ये परेशानियां नहीं उठानी पड़ती।आज इन्हीं जंगलों की कटाई के वजह से ही बाढ़ की स्थिति बनी हुई है और
जहां बारिश नहीं हो रही है वहां सूखा पड़ रहा है ।
इसका कारण भी पेड़ों की अंधाधुंध कटाई है जिस वजह से चारों तरफ सुखा पड़ रहा हैऔर उसका सीधा प्रभाव हमारे किसान भाइयों पर और उनकी फसलों पर पड़ता है।
बात करें अगर हम लैंडस्लाइड की तो शायद जंगलों के अंधाधुंध कटाई से पहाड़ नहीं खिसकते और इसी पेड़ों की कटाई के कारण ही लैंडस्लाइड की घटनाएं होरही है ।
जिस वजह से न जाने कितने लोग अपने घरों को और अपनों को खो देते हैं।
इन सभी का कारण है प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दुरुपयोग ।
और सभी मनुष्य प्रकृति को दोष देते हैं ।लेकिन हम सभी को इस बात को हमेशा ध्यान रखना होगा प्रकृति का जो अधिकार क्षेत्र है उसे मनुष्य ने जबरन छीन लिया है। प्रकृति अपने अधिकार क्षेत्र पर किसी का भी हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करती है हमें इस बात का हमेशा ध्यान रखना होगा
।जिस वजह से प्राकृतिक घटनाएं होती हैं।
प्रकृति के ऊपर छोटी सी कविता
कुदरत का कहर भी जरूरी था ,
इंसानों को सिखाना भी सबक जरूरी था।
बन बैठा था जो मालिक इंसान इस प्रकृति का ,
उससे लाना रस्ते पर भी जरूरी था ।
फायदे के लिए अपने हरे-भरे जंगलों को काट रहा था जिस कदर ,
उसे कुदरत की शक्ति का दिलाना एहसास भी जरूरी था।
कुदरत की हर दी हुई चीज का जो कर रहा था निरादर मनुष्य,
उसे उन अमूल्य चीजों का मूल्य याद दिलाना भी जरूरी था।
लांग रहा जो था मनुष्य सीमा अपनी ,
मनुष्य को सीमा उसकी याद दिलाना भी जरूरी था।
जो इंसानों ने ढाया कहर प्रकृति पर ,
इंसानों पर कहर प्रकृति का ढाना भी जरूरी था।
कभी भी करती नहीं सहन प्रकृति हस्तक्षेप अपने अधिकार क्षेत्र पर,
मनुष्य को बात याद दिलाना यह भी जरूरी था।
धन्यवाद मेरा ब्लॉक पढ़ने के लिए,
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