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जानिए तूफान क्या होते हैं?किस आधार पर इन तूफानों का नामकरण किया जाता है।

नमस्कार स्वागत है आप सभी का मेरे ब्लॉग में एक बार फिर से।  मैं लेकर आई हूं आज बहुत इंटरेस्टिंग जानकारी तूफान किसे कहते हैं और किस आधार पर इनका नामकरण किया जाता है।  तो चलिए चलते हैं जानते हैं क्या होते हैं तूफान। क्‍यों आते हैं चक्रवाती तूफान! कैसे होता है इनका नामकरण, भारत ने रखे हैं कितने तूफानों के नाम? जानें सबकुछ। चक्रवात एक सर्कुलर स्टॉर्म यानी गोलाकार तूफान होते हैं, जो गर्म समुद्र के ऊपर बनते हैं. हर तरह के साइक्लोन बनने के लिए समुद्र के पानी के सरफेस का तापमान 25-26 डिग्री के आसपान होना जरूरी होता है. यही वजह है कि साइक्‍लोन अधिकतर गर्म इलाकों में ही बनते हैं. दरअसल समुद्र का तापमान बढ़ने पर उसके ऊपर मौजूद हवा गर्म और नम हवा होने की वजह से हल्‍की हो जाती है और ऊपर उठती है. इससे उस हवा का एरिया खाली हो जाता है और नीचे की तरफ हवा का प्रेशर कम हो जाता है। इस खाली जगह पर आसपास की ठंडी हवा पहुंचती है और वो भी गर्म होकर ऊपर उठने लगती है. इस तरह ये साइकिल शुरू हो जाता है और इससे बादल बनने लगते हैं. तमाम इलाके बारिश से प्रभावित होते हैं और ...

रहस्यमई कुवा अग्रसेन की बावली

नमस्कार स्वागत है आप सभी का मेरे ब्लॉग में।
मैं आज लेकर आई हूं बहुत ही दिलचस्प जानकारी अग्रसेन की बावली के बारे में। तो चलिए चलते हैं जानने के लिए कहां है?
  ऐसी क्या खास विशेषता है इसमें जो इसे रहस्यमई बनाती है।

दिल्ली में ऐसी बहुत सी जगह है जो पर्यटकों को मन को लुभाती है इनमें से ही एक  जगह अग्रसेन की बाओली।
 जो व्यस्त जनजीवन से दूर कनॉट प्लेस के पास स्थित है ।यह बावली दिल्ली की सबसे खूबसूरत जगह में से एक मानी जाती है ।जो कनॉट प्लेस के हेली रोड में स्थित है। 

यह बावली  60 मीटर लंबी और 15 मीटर ऊंची है।  यह एक कुआं है। जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित रखा गया है।

माना जाता है कि महाभारत काल में ही इसका निर्माण करवाया गया था। लेकिन बाद में अग्रवाल समाज के महाराजा अग्रसेन ने इसकी
 मरम्मत करवाई थी। जिसके बाद इसे अग्रसेन की बाओली के नाम से जाना गया।

 हालांकि अब तक इससे संबंधित कोई भी ऐतिहासिक जानकारी नहीं मिली है।
 वास्तव में इसे बनाया किसने है। देश की सबसे भयानक जगह  की सूची में इसका नाम भी शामिल है।
 
ऊपर से यह  लाल बलुआ पत्थर से बनी दीवार के कारण बेहद सुंदर लगती है। लेकिन आप जैसे जैसे इसकी सीढ़ियों से नीचे उतरते जाते हैं एक अजीब सी गहरी चुप्पी फैलने लगती है और आकाश गायब होने लगता है।
 कहने का मतलब है कि इतनी गहरी है कि आसमां से बिल्कुल आपको बिल्कुल सुनसान लगेगा जैसे आप पाताल लोक में जा रहे हैं।


इस बावली के तमाम ऐसे अनसुलझे रहस्य भी हैं। जो आज तक कोई नहीं सुलझा पाया है। हालांकि यहां  के शांत वातावरण में किताब पढ़ने के लिए भी कॉलेज के विद्यार्थी आते हैं। दिल को शांत करने के लिए यह जगह बहुत अच्छी मानी जाती है।


इसकी खूबसूरती और इसकी बनावट को देखकर पर्यटक इसकी ओर खीचे चले आते हैं।
इस बावली के नीचे तक पहुंचने के लिए के करीब आपको 103से106  सीढ़ियां उतरने होंगी।
 पुराने जमाने में पानी को बचाने के लिए इस तरह की बाओली को बनाई जाती थी। ताकि पानी सुरक्षित रहे। 
एक समय में दिल्ली और पुरानी दिल्ली के लोग यहां तैराकी  सीखने के लिए आते थे ।
 यहां पर लोग स्विमिंग करने के लिए आते थे ।बावली के कुऐ  काले रंग के पानी से भरा हुआ था और लोगों को इसके आसपास जाने में भी डर लगता था। यह कालापानी यहां आने लोगों को सम्मोहित कर उन्हें आत्महत्या के लिए मजबूर करता था ऐसा कहा जाता है पर सच्चाई क्या है यह कोई भी नहीं जान सकता है। 

बावली की सबसे बड़ी विशेषता है कि और बावली अगर आप देखेंगे तो वह गोलाकार आकार में होती है लेकिन यह बावली है जो आयताकार आकार के होने के कारण इसे खास बनाती है।

बात अगर हम करें भारत की राष्ट्रीय अभिलेखागार के नक्शे के अनुसार तो 1868 में इस स्मारक का निर्माण ब्रिटिश सरकार द्वारा किया गया था। 

इस स्मारक को ओजर सेन की बाओली के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
 वहीं बावली के बाहर लगे शिलापट में इसका नाम उग्रसेन की बावली लिखा गया है।

 बावली के पश्चिम कोने में छोटी सी मस्जिद भी है। इस मस्जिद के स्तंभों में कुछ ऐसे विशेष लक्षण और रंग रूप उभरे हुए हैं जो बौद्ध काल की कुछ असाधारण संरचनाओं से मेल खाते हैं।
बावली के शांत वातावरण में पत्थर की ऊंची ऊंची दीवारों के बीच जब कबूतरों की आवाज आती है और चमगादड़ों दोनों के पंखों की फड़फड़ा हट की आवाज से  बावली का वातावरण पूरे शरीर को कपा देती है। यहां पर अगर आप खड़े होंगे तो इतना डर लगता है कि मानो कोई भूतिया मूवी हम देख रहे हो।

लोगों का यह भी मानना है कि यहां पर अगर वह लोग घूमने आते हैं तो यहां पर कुछ अदृश्य साया होने का उन्हें एहसास होता है।

बात करें अगर हम कुछ वर्षों पहले की तो बावली बहुत चर्चित तो नहीं थी लेकिन जब से आमिर खान की मूवी पीके की शूटिंग यहां हुई है तो प्रेमी जोड़े पर्यटको के बीच इस जगह की पहचान बन गई है।
 अब यहां आने-जाने वाले लोग अच्छी खासी संख्या में आते हैं।


शांत वातावरण के कारण यहां पर मन को अजीब सी शांति मिलती है। मुझे लगता है घूमने के लिए यह जगह बेहद खूबसूरत जगह में से एक मानी जाती है।


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धन्यवाद,

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