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आज 13 Aprilहैं। इतिहास का वह काला दिन जब हजारों लोग अंग्रेजो के अत्याचारों की शिकार हुए थे। जाने कितने बच्चे बूढ़े और जवान लोग इस दिन मारें गए।
तो चलिए चलते हैं जानने के लिए क्या हुआ था इस दिन।
देश की आजादी के इतिहास में 13 अप्रैल का दिन एक दुखद घटना के साथ दर्ज है। वह वर्ष 1919 का 13 अप्रैल का दिन था, जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ।
आज ही के दिन (13 अप्रैल) वर्ष 1919 को जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा के लिए जमा हुए हजारों भारतीयों पर अंग्रेज हुक्मरान ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं। रॉलेट एक्ट के विरोध में बैठे लोगों पर जनरल डायर के आदेश पर गोलियां चलाई गई थीं। इसमें कई मासूमों सहित 350 से अधिक लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए थे। आज इस नरसंहार की घटना को 103 साल पूरे हुए है।
पंजाब के अमृतसर जिले में ऐतिहासिक स्वर्ण मंदिर के नजदीक जलियांवाला बाग नाम के इस बगीचे में अंग्रेजों की गोलीबारी से घबराई बहुत सी औरतें अपने बच्चों को लेकर जान बचाने के लिए कुएं में कूद गईं। निकास का रास्ता संकरा होने के कारण बहुत से लोग भगदड़ में कुचले गए और हजारों लोग गोलियों की चपेट में आए।
अंग्रेजी हुकूमत ने 10 मार्च, 1919 को रॉलेट एक्ट (ब्लैक एक्ट) पारित किया गया था। जिसमें सरकार को बिना किसी मुकदमे के देशद्रोही गतिविधियों से जुड़े किसी भी व्यक्ति को कैद करने के लिए अधिकृत किया गया था। इससे देशव्यापी अशांति फैल गई थी। इस रॉलेट एक्ट के विरोध में गांधी ने सत्याग्रह की शुरुआत की थी। ब्रिटिश अधिकारियों ने गांधी को पंजाब में प्रवेश करने से रोकने और आदेशों की अवहेलना करने पर उन्हें गिरफ्तार करने के आदेश जारी किए गए थे।पं
पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर जनरल माइकल ओ डायर (1912-1919) ने सुझाव दिया कि गांधी को बर्मा निर्वासित कर दिया जाए, लेकिन उनके साथी अधिकारियों ने इसका विरोध किया क्योंकि उन्हें लगा कि यह जनता को उकसा सकता है। डॉ सैफुद्दीन किचलू और डॉ सत्यपाल, दो प्रमुख नेताओं, जो हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। उन्होंने अमृतसर में रॉलेट एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया। 9 अप्रैल, 1919 को ओ डायर ने उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश जारी किया था।
क्यों हुई थी लोगों की हत्या
पंजाब के अमृतसर में स्वर्ण मंदिर से थोड़ी ही दूरी पर जलियांवाला बाग नाम से एक स्थान है। इसी जगह पर आज ही के दिन अंग्रेजी हुक्कुमत के खिलाफ रॉलेट एक्ट के विरोध में हजारों सिख यहाँ पर एकसाथ आए थे। कहा जाता है कि अंग्रेजों की दमनकारी नीति, और सत्यपाल और सैफुद्दीन की गिरफ्तारी के खिलाफ भी लोग इस सभा में एकजुट हुए थे। शहर में कर्फ्यू था और हजारों की संख्या में लोग बैठक में पहुंचे थे। बाग में चल रही सभा में जनरल रेजिनाल्ड डायर पहुंचा और उसने सैनिकों को फायरिंग का आदेश दिया।
जलियांवाला बाग हत्याकांड के कारण।
ऐसा बताया जाता है कि, इस जगह पर 5 हजार लोग मौजूद थे। यहां जनरल डायर ने अपने 90 ब्रिटिश सैनिकों के साथ घेर लिया और यह नरसंहार किया। इस प्रदर्शन को दबाने के लिए जनरल डायर ने जो अपराध किया, उसने ब्रिटिश साम्राज्य को कुछ सालों तक भारत पर शासन करने की ताकत भले दे दी, लेकिन भारत की जनता इस जख्म को भूल नहीं सकी। जलियांवाला बाग नरसंहार में बहे खून ने भारत के स्वाधीनता आंदोलन को नई दिशा दे दी।
इस हत्या कांड के दोषी जनरल डायर (General Dyer) की हत्या भी 21 साल बाद एक हिंदुस्तानी के हाथों हुई थी। जिन्हें सरदार उधम सिंह (Sardar Udham Singh) के नाम से जाता जाता है। जलियांवाला बाग में हुए इस नरसंहार का बदला लेने के लिए हिंदुस्तान का शेर सरदार उधम सिंह लंदन पहुंचे थे। उन्होंने कई सालों की योजनाओँ के बाद आखिरकार 13 मार्च 1940 को डायर को एक बैठक में स्पीच देते वक्त गोलियों से भून दिया था। भलेही इसके बाद सरदार उधम सिंह सजा मिली लेकिन उन्होंने अपना बदला ले लिया था।
इस वजह से आज का दिन को इतिहास में काले दिन के रूप में जाना जाता है। आज जलियांवाला बाग हत्याकांड की 100वीं बरसी है।
आज के दिन सभी शहीदों को हम सब की तरफ से श्रद्धांजलि।
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